यह चिटठा (ब्लॉग) समयजयी सिद्ध संत देवरहा बाबा के अमर उपदेशों, अलौकिक जीवन तथा जनकल्याण कार्यक्रमों के प्रचार, प्रसार एवं विश्व बंधुत्व हेतु समर्पित है.
मंगलवार, 14 जनवरी 2014
devaraha baba
देवरहा बाबाः एक सिद्ध तपस्वी और सरल संत!
वेद विलास
देवरहा बाबा-devraha baba
देवरिया। अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। पंद्रह जून देवरहा बाबा की पुण्य तिथि है। वे कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रमाणिक रिकार्ड नहीं है, तथापि लोगों का विश्वास है कि वे दो शताब्दी से भी ज्यादा जिए। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।
कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा।
सिद्धियों और योग के बल पर उम्र को अपने वश में करने के लिए विख्यात देवरहा बाबा के बारे में इस तरह की कितनी ही घटनाएं लोगों की जुबान पर हैं। ढाई सौ से पांच सौ वर्ष के बीच की कोई संख्या उनके जीवन वर्षों के रूप में बताई जाती है। इसका कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है और इस बारे में कई लोग संदेह भी व्यक्त करते हैं, लेकिन लंबी उम्र होना कोई अनोखी बात नहीं है। न्यू यार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब में लोगों के लंबे जीवन के जुटाए गए आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्षतक जिए हैं। यह जानकारी जांची परखी हुई है। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। देवरहा बाबा के जन्म वर्ष का तो किसी को पता नहीं है, लेकिन कहते हैं कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बचपन में उन्हें देखा था और यह कम से कम नब्बे साल पुरानी बात है।
बाबा कब सिद्ध पुरुष हो गए, यह भी किसी ने नहीं जाना, लेकिन सुना जाता है कि काफी समय से उनके दर्शन के लिए लोग उमड़ते थे। सरल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, फिर लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। लोग बस यही कहते रहे कि अजब था पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊंचे मचान में देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान आदि करते। आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। भक्त कहते हैं कि बच्चों की तरह भोला दिल था उनका। कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बांट देते। वह दयावान थे, सबको आशीर्वाद दिया। कहते हैं कि बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी थी, आवाज़ में भी भारीपन था, जो एक दिव्य संत में ही माना जाता है।
देवराह बाबा बहुत कम बोलते थे, लेकिन उनसे कोई मार्गदर्शन करने के लिए कहता तो वे बेधड़क अपनी बात कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी छुआ। वह कहते थे कि जबतक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा सकते, तबतक भारतीय समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिए है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जार्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जार्ज को कभी उनके भाई ने बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, तब उन्हें यह बताया गया था कि किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा, राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की थी।
बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया। ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।
पंद्रह जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन और घनघोर बादल छाए थे। उस दिन की शाम को बाबा ने इह लीला का संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। दो दिन तक उनके शरीर को यमुना किनारे भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया था। बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर देश-देशांतर में फैली और हजारों लोग उन्हें विदा देने के लिए उमड़ पड़े। उन दिनों संचार और संपर्क के साधन आज की तरह तीव्र और सुलभ नहीं थे, फिर भी सूचना पाकर भारत के अलावा यूरोपीय देशों से भी श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शनों के लिए आए। कुछविज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जांचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह कहां संभव था। जन स्वास्थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे!
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