मंगलवार, 14 जनवरी 2014

devaraha baba; arti

जय अनादि,जय अनंत, जय-जय-जय सिद्ध संत. देवरहा बाबाजी, यश प्रसरित दिग-दिगंत......... *... धरा को बिछौनाकर, नील गगन-चादर ले. वस्त्रकर दिशाओं को, अमृत मन्त्र बोलते.. सत-चित-आनंदलीन, समयजयी चिर नवीन. साधक-आराधक हे!, देव-लीन, थिर-अदीन.. नश्वर-निस्सार जगत, एकमात्र ईश कंत.. देवरहा बाबाजी, यश प्रसरित दिग-दिगंत......... * ''दे मत, कर दर्शन नित, प्रभु में हो लीन चित.'' देते उपदेश विमल, मौन अधिक, वाणी मित.. योगिराज त्यागी हे!, प्रभु-पद-अनुरागी हे! सतयुग से कलियुग तक, जीवित धनभागी हे.. 'सलिल' अनिल अनल धरा, नभ तुममें मूर्तिमंत. देवरहा बाबाजी, यश प्रसरित दिग-दिगंत......... *

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