मंगलवार, 14 जनवरी 2014

devaraha baba; arti

जय अनादि,जय अनंत, जय-जय-जय सिद्ध संत. देवरहा बाबाजी, यश प्रसरित दिग-दिगंत......... *... धरा को बिछौनाकर, नील गगन-चादर ले. वस्त्रकर दिशाओं को, अमृत मन्त्र बोलते.. सत-चित-आनंदलीन, समयजयी चिर नवीन. साधक-आराधक हे!, देव-लीन, थिर-अदीन.. नश्वर-निस्सार जगत, एकमात्र ईश कंत.. देवरहा बाबाजी, यश प्रसरित दिग-दिगंत......... * ''दे मत, कर दर्शन नित, प्रभु में हो लीन चित.'' देते उपदेश विमल, मौन अधिक, वाणी मित.. योगिराज त्यागी हे!, प्रभु-पद-अनुरागी हे! सतयुग से कलियुग तक, जीवित धनभागी हे.. 'सलिल' अनिल अनल धरा, नभ तुममें मूर्तिमंत. देवरहा बाबाजी, यश प्रसरित दिग-दिगंत......... *

SHRI DEVARAHA BABA JAN KALYAN TRUST

SHRI DEVARAHA BABA JAN KALYAN TRUST Regd. No. 02/b/113/12-13/BPL Founder Trustee Members Management Commitee Hon. Chairman cum president Shri Satish Chandra Varma A 436 Shahpura, Bhopal 462039, 0755 2426124, 91 94250 20819, satish_saroj1928@yahoo.com Hon.Vice President Shri Sanjeev Kumar Varma oo1 248 652 8586, 001 248 990 0670, 91 9993562126, sanjeev_varma@comcast.net Hon.Secretary Shrimati Awantika Varma 91 9893372126, avarma64@yahoo.com Hon.Treasurer Anurag BHatnagar 91 9755166198, anuanu_b@rediffmail.com Hon.Finencial Advisor Shri Sachin Saxena, 0755- 2778828/ 4222164, sachins75@rediffmail.com Members Shri Manoj Kumar Saxena 65 65205256, 65 83312884, saxena.manoj@gmail.com Dr. Smt. Anjali Saxena 91 9329694541, anjali.manoj@gnail.com Dr. Sudhakar Prasad 505 823 9650, 505 270 0147, sprasad@unm.edu Dr. Arti Prasad 505 823 9650, 505 270 8454, aprasad@salud.unm.edu Shri Dinesh Sinha 91 9971365085, dineshsinha@dainikbhaskargroup.com Reena Sinha 91 9971365085, dineshsinha@dainikbhaskargroup.com Dr. Pratul Sinha 91 9489147752, drpratul@gmail.com Acharya Er. Sanjiv Verma 'Salil' 91 0761 2411131, 91 94251 83244, salil.sanjiv@gmail.com, divynarmada@gmail.com

devaraha baba

देवरहा बाबाः एक सिद्ध तपस्वी और सरल संत! वेद विलास देवरहा बाबा-devraha baba देवरिया। अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। पंद्रह जून देवरहा बाबा की पुण्य तिथि है। वे कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रमाणिक रिकार्ड नहीं है, तथापि लोगों का विश्वास है कि वे दो शताब्दी से भी ज्यादा जिए। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं। कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। सिद्धियों और योग के बल पर उम्र को अपने वश में करने के लिए विख्यात देवरहा बाबा के बारे में इस तरह की कितनी ही घटनाएं लोगों की जुबान पर हैं। ढाई सौ से पांच सौ वर्ष के बीच की कोई संख्या उनके जीवन वर्षों के रूप में बताई जाती है। इसका कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है और इस बारे में कई लोग संदेह भी व्यक्त करते हैं, लेकिन लंबी उम्र होना कोई अनोखी बात नहीं है। न्यू यार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब में लोगों के लंबे जीवन के जुटाए गए आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्षतक जिए हैं। यह जानकारी जांची परखी हुई है। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। देवरहा बाबा के जन्म वर्ष का तो किसी को पता नहीं है, लेकिन कहते हैं कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बचपन में उन्हें देखा था और यह कम से कम नब्बे साल पुरानी बात है। बाबा कब सिद्ध पुरुष हो गए, यह भी किसी ने नहीं जाना, लेकिन सुना जाता है कि काफी समय से उनके दर्शन के लिए लोग उमड़ते थे। सरल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, फिर लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। लोग बस यही कहते रहे कि अजब था पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊंचे मचान में देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान आदि करते। आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। भक्त कहते हैं कि बच्चों की तरह भोला दिल था उनका। कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बांट देते। वह दयावान थे, सबको आशीर्वाद दिया। कहते हैं कि बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी थी, आवाज़ में भी भारीपन था, जो एक दिव्य संत में ही माना जाता है। देवराह बाबा बहुत कम बोलते थे, लेकिन उनसे कोई मार्गदर्शन करने के लिए कहता तो वे बेधड़क अपनी बात कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी छुआ। वह कहते थे कि जबतक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा सकते, तबतक भारतीय समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिए है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जार्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जार्ज को कभी उनके भाई ने बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, तब उन्हें यह बताया गया था कि किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा, राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की थी। बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया। ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था। पंद्रह जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन और घनघोर बादल छाए थे। उस दिन की शाम को बाबा ने इह लीला का संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। दो दिन तक उनके शरीर को यमुना किनारे भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया था। बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर देश-देशांतर में फैली और हजारों लोग उन्हें विदा देने के लिए उमड़ पड़े। उन दिनों संचार और संपर्क के साधन आज की तरह तीव्र और सुलभ नहीं थे, फिर भी सूचना पाकर भारत के अलावा यूरोपीय देशों से भी श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शनों के लिए आए। कुछविज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जांचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह कहां संभव था। जन स्वास्‍थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे!

devaraha baba

देवरहा बाबाः एक सिद्ध तपस्वी और सरल संत! वेद विलास देवरहा बाबा-devraha baba देवरिया। अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। पंद्रह जून देवरहा बाबा की पुण्य तिथि है। वे कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रमाणिक रिकार्ड नहीं है, तथापि लोगों का विश्वास है कि वे दो शताब्दी से भी ज्यादा जिए। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं। कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। सिद्धियों और योग के बल पर उम्र को अपने वश में करने के लिए विख्यात देवरहा बाबा के बारे में इस तरह की कितनी ही घटनाएं लोगों की जुबान पर हैं। ढाई सौ से पांच सौ वर्ष के बीच की कोई संख्या उनके जीवन वर्षों के रूप में बताई जाती है। इसका कोई प्रमाणित तथ्य नहीं है और इस बारे में कई लोग संदेह भी व्यक्त करते हैं, लेकिन लंबी उम्र होना कोई अनोखी बात नहीं है। न्यू यार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब में लोगों के लंबे जीवन के जुटाए गए आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्षतक जिए हैं। यह जानकारी जांची परखी हुई है। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। देवरहा बाबा के जन्म वर्ष का तो किसी को पता नहीं है, लेकिन कहते हैं कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बचपन में उन्हें देखा था और यह कम से कम नब्बे साल पुरानी बात है। बाबा कब सिद्ध पुरुष हो गए, यह भी किसी ने नहीं जाना, लेकिन सुना जाता है कि काफी समय से उनके दर्शन के लिए लोग उमड़ते थे। सरल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, फिर लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। लोग बस यही कहते रहे कि अजब था पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊंचे मचान में देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान आदि करते। आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। भक्त कहते हैं कि बच्चों की तरह भोला दिल था उनका। कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बांट देते। वह दयावान थे, सबको आशीर्वाद दिया। कहते हैं कि बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी थी, आवाज़ में भी भारीपन था, जो एक दिव्य संत में ही माना जाता है। देवराह बाबा बहुत कम बोलते थे, लेकिन उनसे कोई मार्गदर्शन करने के लिए कहता तो वे बेधड़क अपनी बात कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी छुआ। वह कहते थे कि जबतक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा सकते, तबतक भारतीय समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिए है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जार्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जार्ज को कभी उनके भाई ने बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, तब उन्हें यह बताया गया था कि किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना। भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा, राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की थी। बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया। ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था। पंद्रह जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन और घनघोर बादल छाए थे। उस दिन की शाम को बाबा ने इह लीला का संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। दो दिन तक उनके शरीर को यमुना किनारे भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया था। बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर देश-देशांतर में फैली और हजारों लोग उन्हें विदा देने के लिए उमड़ पड़े। उन दिनों संचार और संपर्क के साधन आज की तरह तीव्र और सुलभ नहीं थे, फिर भी सूचना पाकर भारत के अलावा यूरोपीय देशों से भी श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शनों के लिए आए। कुछविज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जांचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह कहां संभव था। जन स्वास्‍थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे!

lekh; devaraha baba viragi sant -sanjiv


देवरहा बाबा पुण्य तिथि १५ जून पर पुण्य स्मरण:
देवरहा बाबा : विरागी संत 
-संजीव वर्मा  'सलिल'
*
भारत भूमि चिरकाल  संतों की लीला और साधना भूमि है. वर्तमान में जिन संतों  की सिद्धियों लोकप्रियता और सरलता बहुचर्चित है उनमें देवरहा बाबा अनन्य हैं. अपनी सिद्धियों, उपलब्धियों, उम्र आदि के संबंध में देवरहा बाबा ने कभी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ हमेशा उनमें चमत्कार खोजती रही किन्तु वे स्वयं प्रकृति में परमतत्व को देखते रहे. उनकी सहज, सरल उपस्थिति में वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे।
File:Devaha Baba.jpg 
सतयुग से कलियुग तक:
देवरहा बाबा के जन्म के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है. बाबा कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रामाणिक रिकार्ड नहीं है तथापि लोगों का विश्वास है कि वे ३०० से ५०० वर्षों से अधिक जिए। न्यूयार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब द्वारा जुटाये गये आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्ष तक जिए हैं। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। उनके आश्रम में देश-विदेश के ख्यातिनाम सिद्ध, संत, जननेता और सामान्यजन समभाव से आते और स्नेहाशीष पाते थे. बाबा को कभी किसी  खाते-पीते देखा न वस्त्र धारण करते या शौचादि क्रिया करते। बाबा सांसारिकता से सर्वथा दूर थे. बाबा के अनन्य भक्त भोपाल निवासी इंजी. सतीशचंद्र वर्मा के अनुसार बाबा का अवतरण सतयुग में हुआ था बाबाका जीवनलीला काल सतयुग से कलियुग है.
बाबा की ख्याति सदियों पूर्व से सकल विश्व में रहीं है. सन १९११ में भारत की यात्रा पर आने से पहले ब्रिटिश नरेश जार्ज पंचम ने अपने भाई प्रिंस फिलिप से पूछा कि क्या भारत में वास्तव में महान वास है? भाई ने बताया कि भारत में वाकई महान सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लावलश्‍कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियरा इलाके में मइल गाँव तक उनके आश्रम तक गया। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्‍वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को ब्रिटिश सरकार के पक्ष में करने के लिए हुई थी। जार्ज पंचम से हुई बातचीत के बारे में बाबा ने अपने कुछ शिष्‍यों को बताया भी था.
भविष्यदर्शन: 
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने माता-पिता के साथ बाबा के दर्शन अपने बचपन में लगभग ३ वर्ष की आयु में किये थे ।  उन्हें देखते ही बाबा देखते ही बोल पडे- 'यह बच्‍चा तो राजा बनेगा।' बाद में राष्‍ट्रपति बनने के बाद डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन १९५४ के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा के भक्तों में जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। बाबा के भक्‍तों में लालबहादुर शास्‍त्री, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटलबिहारी बाजपेई जैसे व्यक्तित्व रहे हैं। पुरूषोत्‍तम दास टंडन को तो  बाबा ने ही 'राजर्षि' की उपाधि दी थी।

दियरा इलाके में रहने के कारण बाबाका नाम देवरहा बाबा पडा । नर्मदा के उद्गमस्थल अमरकंटक में आँवले के पेड पर बने मचान पर तप करने पर उनका नाम अमलहवा बाबा भी हुआ। उनका पूरा जीवन मचान पर  ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका आश्रम था, नीचे से लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के माठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्‍तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्‍तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह, हर दिन जुटती थी। 
  
वृक्ष की रक्षा: 
जून १९८७ में वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा लगा था। तभी प्रधानमंत्री राजीव गांधी से बाबा के दर्शन हेतु आने की सूचना प्राप्त हुई। अधिकारियों में अफरातफरी मच गयी। प्रधानमंत्री के आगमन -भ्रमण क्षेत्र का चिन्हांकन किया गया। उच्चाधिकारियों ने हैलीपैड बनाने के लिए एक बबूल पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिये। यह सुनते ही बाबा ने एक उच्च पुलिस अफसर को बुलाकर पूछा कि पेड़ क्यों कटना है? 'प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए वृक्ष काटना आवश्यक है' सुनकर बाबा ने कहा; ' तुम पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! पेड़ पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूँगा? यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अधिकारी ने विवशता बतायी कि आदेश दिल्ली से आये उच्च्चाधिकारी का है, इसलिए वृक्ष काटा ही जाएगा। पूरा पेड़ नहीं एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा: यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन-रात मुझसे बतियाता है. यह पेड़ नहीं कट सकता।' इस घटनाक्रम से अधिकारीयों की दुविधा बढ़ी तो बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा: 'घबड़ा मत, मैं तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम कैंसिल करा देता हूँ। आश्चर्य कि दो घंटे बाद  कार्यालय से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी बाबा के दर्शन हेतु पहुँचे किन्तु वह पेड़ नहीं कटा। 
आज हम सब निरंतर वृक्षों और वनस्पतियों का विनाश कर रहे हैं, यह प्रसंग पेड़ों के प्रति बाबा  संवेदनशीलता बताता है तथा प्रेरणा देता है कि हम सब प्रकृति  पर्यावरण के साथ आत्मभाव विकसित कर उनकी रक्षा करें।
पक्षियों से बातचीत:
देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, लौटते तो लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। उन्होंने पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊँचे मचान पर देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान करते। वे आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। उनका स्वभाव बच्चों की तरह भोला था। वे कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बाँटकर सबको आशीर्वाद देते। बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी और आवाज़ भारी थी। 
मितभाषी बाबा:
बाबा बहुत कम बोलते थे किन्तु मार्गदर्शन माँगे जाने पर अपनी बात बेधड़क कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी प्रभावित किया। बाबा के अनुसार भारतीय जब तक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा देते, समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिये है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में खूब चर्चा होती थी। प्रत्‍यक्षदर्शी बताते हैं कि आधा-आधा घंटा तक वे पानी में रहते थे। पूछने पर उन्‍होंने शिष्‍यों से कहा- मैं जल से ही उत्‍पन्‍न हूँ। उनके भक्‍त उन्‍हें दया का महासमुंद बताते हैं। अपनी यह सम्‍पत्ति बाबा ने मुक्‍त हस्‍त से लुटायी, जब जो आया, बाबा से भरपूर आशीर्वाद लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्‍यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्‍या है? दिव्‍यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कडक आवाज, दिल खोल कर हँसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्‍त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्‍यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्‍प्‍यूटर की तरह। हाँ, बलिष्‍ठ कदकाठी भी थी।
  
सुपात्र को विद्या दान:


बाबा के पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएँ सिखाते थे। योग विद्या पर उन्हेंपूर्ण अधिकार था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। सिद्ध सम्मेलनों में संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से वे सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना ज्ञान किससे, कहाँ, कब - कैसे पाया? ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों में बाबा सिद्ध थे । धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे संवाद कर मार्गदर्शन पाते थे। बाबाने जीवन में लंबी-लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था। 
http://anandway.com/media/Sri-Devraha-Baba-Samadhi-Vrindavan-Photo_13AEB/DSC01477_3.jpgलीला संवरण:
आजीवन स्वस्थ्य तथा मजबूत रहे बाबा देह त्‍यागने के कुछ पूर्व कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। बाबा नित्य ही बिना नागा भक्तों को मचान  दर्शन देते थे किन्तु ११ जून १९८० से अचानक बाबाने दर्शन देना बंद कर दिया। भक्तों को अनहोनी की आशंका हुई. मौसम अशांत होने लगा. बाबा मचान पर त्रिबंध सिद्धासन में बैठे थे. चिकित्सकों ने शरीर का तापमान अत्यधिक पाया, तापमापी (थर्मामीटर) की अंतिम सीमा पर पारा सभी को आशंकित कर रहा था. मंगलवार १९ जून १९९० योगिनी एकादशी की शाम आंधी-तूफ़ान, मेघगर्जन और भारी जलवृष्टि बीच बाबा ने इहलीला संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गये। यमुना की लहरें तट पर हाहाकार कर बाबा के मचान तक पहुँचाने को मचल रही थीं. शाम ४ बजे स्पंदन रहित बाबा की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी गयी. अगणित भक्त शोकाकुल थे. देश-विदेश  विद्युतगति से फ़ैल .रहा था. अकस्मात् बाबा के  शिष्य देवदास ने बाबाके शीश पर स्पंदन अनुभव किया, ब्रम्हरंध्र खुल गया जिसे पुष्पों से भरा गया किन्तु वह फिर रिक्त हो गया. दो दिन तक बाबा के शरीर को  सिद्धासन त्रिबंध स्थिति में किसी चमत्कार की आशा में रखा गया. यमुना किनारे भक्त दर्शन हेतु उमड़ते रहे, अश्रु के अर्ध्य समर्पित करते रहे । बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर संचार-संपर्क के अधुनातन साधन न होने पर भी देश-देशांतर तक फैली, विश्व के कोने-कोने से हजारों भक्त उन्हें विदा देने उमड़ पड़े। कुछ विज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जाँचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह संभव नहीं हो सका. आखिरकार, दो दिन बाद बाबा की देह को उसी सिद्धासन-त्रिबंध की स्थिति में यमुना में प्रवाहित कर दिया गया
पूर्व जन्म के भक्त- साधक:
बाबा का मार्गदर्शन भक्तों को आज भी मिलता है. भक्त बाबा की साक्षात उपस्थिति का अनुभव तथा वार्तालाप भी करते हैं. शाहपुरा भोपाल निवासी श्री सतीश चन्द्र वर्मा (सेवा निवृत्त अधीक्षण यंत्री सिंचाई विभाग) बाबा के अनन्य ही नहीं पिछले जन्म के भी भक्त हैं. वे आज भी  ध्यान में बाबा से नित्य साक्षात करते हैं. ध्यान में बाबा से प्राप्त आदेशानुसार उन्होंने अपनी भोपाल-होशंगाबाद बहुमूल्य लगभग २.९ एकड़ भूमि (जो उनके पूर्वजन्म में उनकी तथा बाबा की तपस्थली थी) बाबा  के आश्रम व मंदिर हेतु गठित न्यास का के नाम कर दी है.यहाँ  साधनहीन वर्ग हेतु शिक्षा संस्थान व  हिंदी विद्यापीठ स्थापित किये जाने हैं.

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'


lekh: devaraha baba viragi sant -sanjiv


देवरहा बाबा पुण्य तिथि १५ जून पर पुण्य स्मरण:
 
देवरहा बाबा : विरागी संत 
 
-संजीव वर्मा  'सलिल'
*
भारत भूमि चिरकाल  संतों की लीला और साधना भूमि है. वर्तमान में जिन संतों  की सिद्धियों लोकप्रियता और सरलता बहुचर्चित है उनमें देवरहा बाबा अनन्य हैं. अपनी सिद्धियों, उपलब्धियों, उम्र आदि के संबंध में देवरहा बाबा ने कभी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ हमेशा उनमें चमत्कार खोजती रही किन्तु वे स्वयं प्रकृति में परमतत्व को देखते रहे. उनकी सहज, सरल उपस्थिति में वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे।
 
File:Devaha Baba.jpg 
सतयुग से कलियुग तक:
 
देवरहा बाबा के जन्म के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है. बाबा कब पैदा हुए थे, इसका कोई प्रामाणिक रिकार्ड नहीं है तथापि लोगों का विश्वास है कि वे ३०० से ५०० वर्षों से अधिक जिए। न्यूयार्क के सुपर सेंचुरियन क्लब द्वारा जुटाये गये आकड़ों के अनुसार पिछले दो हजार सालों में चार सौ से ज्यादा लोग एक सौ बीस से तीन सौ चालीस वर्ष तक जिए हैं। इस सूची मे भारत से देवरहा बाबा के अलावा तैलंग स्वामी का नाम भी है। उनके आश्रम में देश-विदेश के ख्यातिनाम सिद्ध, संत, जननेता और सामान्यजन समभाव से आते और स्नेहाशीष पाते थे. बाबा को कभी किसी  खाते-पीते देखा न वस्त्र धारण करते या शौचादि क्रिया करते। बाबा सांसारिकता से सर्वथा दूर थे. बाबा के अनन्य भक्त भोपाल निवासी इंजी. सतीशचंद्र वर्मा के अनुसार बाबा का अवतरण सतयुग में हुआ था बाबाका जीवनलीला काल सतयुग से कलियुग है.
 
बाबा की ख्याति सदियों पूर्व से सकल विश्व में रहीं है. सन १९११ में भारत की यात्रा पर आने से पहले ब्रिटिश नरेश जार्ज पंचम ने अपने भाई प्रिंस फिलिप से पूछा कि क्या भारत में वास्तव में महान वास है? भाई ने बताया कि भारत में वाकई महान सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं, किसी और से मिलो ना मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लावलश्‍कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियरा इलाके में मइल गाँव तक उनके आश्रम तक गया। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्‍वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को ब्रिटिश सरकार के पक्ष में करने के लिए हुई थी। जार्ज पंचम से हुई बातचीत के बारे में बाबा ने अपने कुछ शिष्‍यों को बताया भी था.
 
भविष्यदर्शन: 
 
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपने माता-पिता के साथ बाबा के दर्शन अपने बचपन में लगभग ३ वर्ष की आयु में किये थे ।  उन्हें देखते ही बाबा देखते ही बोल पडे- 'यह बच्‍चा तो राजा बनेगा।' बाद में राष्‍ट्रपति बनने के बाद डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन १९५४ के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा के भक्तों में जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। बाबा के भक्‍तों में लालबहादुर शास्‍त्री, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटलबिहारी बाजपेई जैसे व्यक्तित्व रहे हैं। पुरूषोत्‍तम दास टंडन को तो  बाबा ने ही 'राजर्षि' की उपाधि दी थी।

दियरा इलाके में रहने के कारण बाबाका नाम देवरहा बाबा पडा । नर्मदा के उद्गमस्थल अमरकंटक में आँवले के पेड पर बने मचान पर तप करने पर उनका नाम अमलहवा बाबा भी हुआ। उनका पूरा जीवन मचान पर  ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका आश्रम था, नीचे से लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के माठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्‍तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्‍तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह, हर दिन जुटती थी। 
  
वृक्ष की रक्षा: 
 
जून १९८७ में वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा लगा था। तभी प्रधानमंत्री राजीव गांधी से बाबा के दर्शन हेतु आने की सूचना प्राप्त हुई। अधिकारियों में अफरातफरी मच गयी। प्रधानमंत्री के आगमन -भ्रमण क्षेत्र का चिन्हांकन किया गया। उच्चाधिकारियों ने हैलीपैड बनाने के लिए एक बबूल पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिये। यह सुनते ही बाबा ने एक उच्च पुलिस अफसर को बुलाकर पूछा कि पेड़ क्यों कटना है? 'प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए वृक्ष काटना आवश्यक है' सुनकर बाबा ने कहा; ' तुम पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! पेड़ पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूँगा? यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अधिकारी ने विवशता बतायी कि आदेश दिल्ली से आये उच्च्चाधिकारी का है, इसलिए वृक्ष काटा ही जाएगा। पूरा पेड़ नहीं एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा: यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन-रात मुझसे बतियाता है. यह पेड़ नहीं कट सकता।' इस घटनाक्रम से अधिकारीयों की दुविधा बढ़ी तो बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा: 'घबड़ा मत, मैं तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम कैंसिल करा देता हूँ। आश्चर्य कि दो घंटे बाद  कार्यालय से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी बाबा के दर्शन हेतु पहुँचे किन्तु वह पेड़ नहीं कटा। 
 
आज हम सब निरंतर वृक्षों और वनस्पतियों का विनाश कर रहे हैं, यह प्रसंग पेड़ों के प्रति बाबा  संवेदनशीलता बताता है तथा प्रेरणा देता है कि हम सब प्रकृति  पर्यावरण के साथ आत्मभाव विकसित कर उनकी रक्षा करें।
 
पक्षियों से बातचीत:
 
देवरहा बाबा तड़के उठते, चहचहाते पक्षियों से बातें करते, फिर स्नान के लिए यमुना की ओर निकल जाते, लौटते तो लंबे समय के लिए ईश्वर में लीन हो जाते। उन्होंने पूरी ज़िंदगी नदी किनारे एक मचान पर ही काट दी। उन्हें या तो बारह फुट ऊँचे मचान पर देखा जाता था या फिर नदी के बहते जल में खड़े होकर ध्यान करते। वे आठ महीना मइल में, कुछ दिन बनारस में, माघ के अवसर पर प्रयाग में, फागुन में मथुरा में और कुछ समय हिमालय में रहते थे बाबा। उनका स्वभाव बच्चों की तरह भोला था। वे कुछ खाते पीते नहीं थे, उनके पास जो कुछ आता उसे दोनों हाथ लोगों में ही बाँटकर सबको आशीर्वाद देते। बाबा के पास दिव्यदृष्टि थी, उनकी नजर गहरी और आवाज़ भारी थी। 
 
मितभाषी बाबा:
 
बाबा बहुत कम बोलते थे किन्तु मार्गदर्शन माँगे जाने पर अपनी बात बेधड़क कहते थे। बाबा ने निजी मसलों के अलावा सामाजिक और धार्मिक मामलों को भी प्रभावित किया। बाबा के अनुसार भारतीय जब तक गो हत्या के कलंक को पूरी तरह नहीं मिटा देते, समृद्ध नहीं हो सकते, यह भूमि गो पूजा के लिये है, गो पूजा हमारी परंपरा में है। बाबा की सिद्धियों के बारे में खूब चर्चा होती थी। प्रत्‍यक्षदर्शी बताते हैं कि आधा-आधा घंटा तक वे पानी में रहते थे। पूछने पर उन्‍होंने शिष्‍यों से कहा- मैं जल से ही उत्‍पन्‍न हूँ। उनके भक्‍त उन्‍हें दया का महासमुंद बताते हैं। अपनी यह सम्‍पत्ति बाबा ने मुक्‍त हस्‍त से लुटायी, जब जो आया, बाबा से भरपूर आशीर्वाद लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्‍यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्‍या है? दिव्‍यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कडक आवाज, दिल खोल कर हँसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्‍त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्‍यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्‍प्‍यूटर की तरह। हाँ, बलिष्‍ठ कदकाठी भी थी।
  
सुपात्र को विद्या दान:
 


बाबा के पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएँ सिखाते थे। योग विद्या पर उन्हेंपूर्ण अधिकार था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। सिद्ध सम्मेलनों में संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से वे सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना ज्ञान किससे, कहाँ, कब - कैसे पाया? ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों में बाबा सिद्ध थे । धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे संवाद कर मार्गदर्शन पाते थे। बाबाने जीवन में लंबी-लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था। 
 
http://anandway.com/media/Sri-Devraha-Baba-Samadhi-Vrindavan-Photo_13AEB/DSC01477_3.jpgलीला संवरण:
 
आजीवन स्वस्थ्य तथा मजबूत रहे बाबा देह त्‍यागने के कुछ पूर्व कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। बाबा नित्य ही बिना नागा भक्तों को मचान  दर्शन देते थे किन्तु ११ जून १९८० से अचानक बाबाने दर्शन देना बंद कर दिया। भक्तों को अनहोनी की आशंका हुई. मौसम अशांत होने लगा. बाबा मचान पर त्रिबंध सिद्धासन में बैठे थे. चिकित्सकों ने शरीर का तापमान अत्यधिक पाया, तापमापी (थर्मामीटर) की अंतिम सीमा पर पारा सभी को आशंकित कर रहा था. मंगलवार १९ जून १९९० योगिनी एकादशी की शाम आंधी-तूफ़ान, मेघगर्जन और भारी जलवृष्टि बीच बाबा ने इहलीला संवरण किया और ब्रह्मलीन हो गये। यमुना की लहरें तट पर हाहाकार कर बाबा के मचान तक पहुँचाने को मचल रही थीं. शाम ४ बजे स्पंदन रहित बाबा की देह बर्फ की सिल्लियों पर रखी गयी. अगणित भक्त शोकाकुल थे. देश-विदेश  विद्युतगति से फ़ैल .रहा था. अकस्मात् बाबा के  शिष्य देवदास ने बाबाके शीश पर स्पंदन अनुभव किया, ब्रम्हरंध्र खुल गया जिसे पुष्पों से भरा गया किन्तु वह फिर रिक्त हो गया. दो दिन तक बाबा के शरीर को  सिद्धासन त्रिबंध स्थिति में किसी चमत्कार की आशा में रखा गया. यमुना किनारे भक्त दर्शन हेतु उमड़ते रहे, अश्रु के अर्ध्य समर्पित करते रहे । बाबा के ब्रह्मलीन होने की खबर संचार-संपर्क के अधुनातन साधन न होने पर भी देश-देशांतर तक फैली, विश्व के कोने-कोने से हजारों भक्त उन्हें विदा देने उमड़ पड़े। कुछ विज्ञानियों ने उनके दीर्घ जीवन के रहस्य जाँचने की कोशिश की पर विछोह और व्यथा के उस माहौल में यह संभव नहीं हो सका. आखिरकार, दो दिन बाद बाबा की देह को उसी सिद्धासन-त्रिबंध की स्थिति में यमुना में प्रवाहित कर दिया गया
 
पूर्व जन्म के भक्त- साधक:
 
बाबा का मार्गदर्शन भक्तों को आज भी मिलता है. भक्त बाबा की साक्षात उपस्थिति का अनुभव तथा वार्तालाप भी करते हैं. शाहपुरा भोपाल निवासी श्री सतीश चन्द्र वर्मा (सेवा निवृत्त अधीक्षण यंत्री सिंचाई विभाग) बाबा के अनन्य ही नहीं पिछले जन्म के भी भक्त हैं. वे आज भी  ध्यान में बाबा से नित्य साक्षात करते हैं. ध्यान में बाबा से प्राप्त आदेशानुसार उन्होंने अपनी भोपाल-होशंगाबाद बहुमूल्य लगभग २.९ एकड़ भूमि (जो उनके पूर्वजन्म में उनकी तथा बाबा की तपस्थली थी) बाबा  के आश्रम व मंदिर हेतु गठित न्यास का के नाम कर दी है.यहाँ  साधनहीन वर्ग हेतु शिक्षा संस्थान व  हिंदी विद्यापीठ स्थापित किये जाने हैं.

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

devaraha baba

देवरहा बाबा : रूसी टेलिविज़न का एक दुर्लभ फुटेज उनकी दीर्घ आयु के बारे में तरह-तरह की जनश्रुतियां रही हैं जिनमें से सबसे अहम् रहा बाबू राजेंद्र प्रसाद का ये कथन कि उनके दादा बतौर बालक उनके चरणों में बैठे थे और इस हिसाब से ढाई सौ साल के तो थे ही ये बाबा जो १९८९ में समाधिस्थ हो गए । हमेशा पानी में तैर कर सफ़र करने और धरती पे पैर न रखने वाले इस योगी के कहीं नदी किनारे मचान पे आ बैठने की खबर आग की तरह फ़ैल जाया करती थी । देखने वाली बात ये है कि किस श्रद्धा से विदेशी एंकर ने अपने सर पे इस योगी का पैर धरवाया इस विडियो में । कहते हैं उनका आशीर्वाद देने का स्टाइल यही था और राजनीतिक हस्तियाँ भी घंटों इंतज़ार करती थीं कि वो अपना पैर उनके सर पे धर दें . मैंने ख़ुद किस्से ही सुने थे उनके ,आज ये विडियो जाने कैसे मिल गया । मुझे लगता है कि योगियों के रहस्य-लोक में रूचि रखने वालों को इस से कुछ लाभ होगा और न रखने वालों को कुछ शर्म आएगी कि अबे देखो किस गंभीरता से पश्चिम योग को लेता है और तुम लपड़ -गंजू की मानिंद हाय-हुक्कू हाय गाते फिरते हो । रूसी आती हो किसी को तो भय्या हमें बतला भी दीजो के क्या बोल गया ये टेलिविज़न वाला . ============================ Translation offered by user euglias: Reporter say: This is Devraha Baba, who lives on this wooden platform. He is not a robber or a psycho but a person highly honored and respected not only in India but also far from its borders. He was visited on many occasions by famous and rich Kashigy (?), Sultan of Brunei (?), artists and actors - Liz Taylor, Roger Moore; rulers of India that visited him were Indira Gandhi and Radjiv Gandhi, and ministers of the government. So it is our turn now to see him! Let see what is happening these are high power people from Delhi that brought their children suffering from diarrhea. Conventional drugs would not help them so these people are using alternative methods to deal with their problems. Baba cures people using only words and by touching them using his foot. Up to 3,000 people come to see him daily, some for advise, some to get healed and others just to see him. As we can see, people are sitting by the fence and waiting for when Baba would give them a sign to approach. It happens that people being sent away by means of his young helper. Rumors about this wise man spread from eastern India, state of Bihar in the mid-1950s, when a village was attacked by a pack of wild bears eating people. That is when Baba appeared from one of the huts and stopped the bears by raising his hand. Since then Baba was seen in other parts of India. He could understand the language of animals, heal people by his look or word, give advice and tell the future. In the past he would do predictions of political future for whole countries. For that he was once arrested and only personal involvement of Indira Gandhi helped to get him out of the jail. Some say that Baba was her personal advisor during her last days. This holy man could not protect her but predicted the day she would die (she wrote about it). Question and Answer begins by the reporter: Question by reporter: What do you eat? Answer by Devraha Baba: Nothing by your standards. Question by reporter: How old are you and do you remember your parents? Answer by Devraha Baba: I do not have any age. I was born from the river Yamuna when it was blessed by Krishna. (At this point somebody from the crowd commented that he is 200 years old or just under that.) Question by reporter: People talk about the end of the world that is expected at the end of this century (this interview is dated to mid 1980s), can you comment on that? Answer by Devraha Baba: This is a secret and the time has not come yet to reveal that. I can only say that what ever would happen will be good for the humanity, as I am praying for that. Reporter says: After such an answer we had little hope for our next question: What can you say about the future of the Soviet Union? And here a miracle happened as we got a long answer from this Person who does not even know how a radio or a newspaper looks like: Answer by Devraha Baba: Litva has distorted the Baltics and the 3 Republics would separate, other Republics would follow up. You are going thru a difficult period of suffering but at the end everything will be ok as you will be purged. Your President Gorbachev will visit India this or next year. Let him come over and I would give a good advice to him and bless. Question by reporter: Can we pass on your message to him? Answer by Devraha Baba: No, let him come in person. Question by reporter: Can we get a blessing from you? Reporter says: Here there was a delay for about 15 minutes during which he would glance at us with one eye, greenish and bottomless. Meanwhile it was commented from the crowd that his last blessing happened about 1 year ago and that he does not bless when people ask for it. So we were about to leave when Baba decided to bless me. I am going to comment on my feelings while it is happening. They say that usually insulation is used between the foot and a head to be on a safe side. Reporter says: Later When saying goodbye Baba told us not to leave Delhi quickly after we would return there. We forgot all about it and went off to another assignment. Just recently we found that a train near Bombay was derailed. We were planning to take this train. Well, it could be just a coincidence, or maybe not? ============================ धन्यवाद रोहन

devariya aur devaraha baba

देवरिया जनपद : संतस्थली (देवरहा बाबा) योगिराज देवरहा बाबा :- देवरिया सुप्रसिद्ध संत ब्रह्मर्षि योगिराज देवरहा बाबा की कर्मस्थली रह चुकी है । देवरिया क्षेत्र की जनता हार्दिक रूप से शुक्रगुजार है उस परम मनीषी, योगी की जो देवरिया क्षेत्र को अपना निवास बनाया, इस क्षेत्र की मिट्टी को अपने पावन चरणों से पवित्र किया और अपने ज्ञान एवं योग की वर्षा से श्रद्धालु जनमानस को सराबोर किया । इस योगी की कृपा से देवरिया जनपद विश्वपटल पर छा गया । देवरहा बाबा ब्रह्म में विलीन हो गए लेकिन उनके ईश्वरी गुणों की चर्चा करते हुए आज भी श्रद्धालु अघाते नहीं हैं । देवरहा बाबा के भक्तों की सूची में महान राजनीतिज्ञ माननीया स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर माननीय अटल बिहारी बाजपेयी तक हैं । जनता जनार्दन की सुने तो देवरहा बाबा एक परम सिद्ध महापुरुष थे, इसमें कोई दो राय नहीं । निवास :- देवरहा बाबा के मूल निवास के बारे में लोगो में भ्रम है पर ऐसा कहा जाता है कि देवरहा बाबा कहीं बाहर से आए । देवरहा बाबा ने देवरिया जनपद के सलेमपुर तहसील में मइल (एक छोटा शहर) से लगभग एक कोस की दूरी पर सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल दिया और धर्म-कर्म करने लगे । व्यक्तित्व :- बहुत ही कम समय में देवरहा बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए । बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा । बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे । बाबा का जीवन सादा और एकदम संन्यासी था । बाबा भोर में ही स्नान आदि से निवृत्त होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और मचान पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे । बाबा की लीला :- अब आइए थोड़ा बाबा के ईश्वरी गुणों पर चर्चा की जाए । श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे । प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी । श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है । लोगों में विश्वास है कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया । बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे । लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई । हमारे बाबाजी (दादा) पंडित श्रीरामवचन पाण्डेय बताते हैं कि एक बार वे कुछ लोगों के साथ बहुत सुबह ही देवरहा बाबा के दर्शन के लिए पहुँचे और ज्योहीं मेरे दादाजी और अन्य भक्तों ने देवरहा बाबा को प्रणाम किया त्योंही देवरहा बाबा ने मेरे दादाजी की ओर इशारा करते हुए कहा कि भो पंडित कीर्तन सुनाओ । मेरे दादाजी ने कहा कि बाबा मुझे कीर्तन नहीं आता । इसपर देवरहा बाबा ने कहा कि 'हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे...' यह भी तो कीर्तन ही है फिर सभी श्रद्धालुओं ने मिलकर नामकीर्तन किया । काफी दिनों तक देवरिया में रहने के बाद देवरहा बाबा वृंदावन चले गए । कुछ समय तक वहाँ रहने के बाद देवरहा बाबा सदा के लिए समाधिस्त हो गए । बोलिए संत शिरोमणि देवरहा बाबा की जय ।

devaraha baba & ayodhya

अयोध्या विवाद और देवरहा बाबा : सत्य हुई भविष्यवाणी अयोध्या मामले में ब्रह्मलीन योगीराज श्रीदेवरहाबाबा की भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य हुई। विदित हो कि श्रीदेवरहा बाबा ने अपने भक्तों की जिज्ञासा का समाधान करते हुए यह भविष्यवाणी की थी कि विवादित स्थल पर रामलला विराजमान होंगे और वहां राममंदिर निश्चित बनेगा। अयोध्या मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का निर्णय आते ही ब्रह्मलीन योगीराज श्री देवरहाबाबाजी महाराज के परमशिष्य त्रिकालदर्शी परमसिध्द व अध्यात्म गुरू श्री देवरहा शिवनाथदासजी महाराज के पास भक्तों व मीडियाकर्मियों की भीड़ जुट गयी। मीडियाकर्मियों व भक्तों को संबोधित करते हुए त्रिकालदर्शी व अध्यात्मदर्शी श्री देवरहा शिवनाथदासजी महाराज ने कहा कि अयोध्या मामले पर उच्च न्यायालय का निर्णय करोड़ों रामभक्तों की आस्था के साथ-साथ ब्रह्मलीन योगीराज श्री देवरहा बाबाजी महाराज की भविष्यवाणी की विजय है। चूंकि श्री देवरहाबाबा हमेशा ब्रह्मलीन अवस्था में रहते थे, श्री देवरहाबाबा के पास हिन्दू-मुस्लिम का भेदभाव नहीं था फिर भी कुंभ के अवसर पर जब सभी संप्रदाय के धर्मगुरूओं ने एकजुट होकर श्री देवरहा बाबाजी से अयोध्या मामले पर सवाल करते हुये कहा कि बाबा, मंदिर-मस्जिद का समाधान कब होगा? इस पर श्री देवरहा बाबा ने कहा कि वह मस्जिद नही वरन् मंदिर है। जब बाबर सन 1526 ई. में भारत आया उसके बाद 1528 ई. के अप्रैल माह में रामनवमी के पावन अवसर पर जब बाबर अपने सेनापति मीरबांकी के साथ अयोध्या में पहुंचा और वहां पर जीर्ण-शीर्ण मंदिर में लगे भक्तों के जमावड़ों को देखकर अपने सेनापति मीरबांकी को आज्ञा दी कि इसे तोड़कर नया बना देना। वह केवल आठ दिनों में ही मंदिर का मरम्मत कराकर उसे मस्जिद बना दिया। फिर भी हिन्दू समाज उसे मंदिर समझकर वहां पूजा अर्चना करता रहा। वहां कभी नमाज अदा नही किया गया। आगे श्री देवरहा शिवनाथदासजी ने कहा कि लगभग 450 वर्षों तक हिन्दू-मुस्लिम में प्रेम बना रहा। परंतु जब हिन्दुओं के द्वारा अपने मंदिर एवं आस्था श्रद्धा के प्रतीक स्वरूप रामलला के मंदिर को अदालत द्वारा मांगा गया तो कुछ राजनीतिज्ञों ने विवाद खड़ा कर आपसी भाईचारों के बीच कटुता का बीज बो दिया। आगे श्री शिवनाथदासजी ने कहा कि हमारे गुरूदेव बोले- बच्चा वहां मंदिर है, सो वहां मंदिर ही बनेगा। उसमें रामलला ही रहेंगे और आगे चलकर हिन्दू-मुस्लिम में पहले की तरह प्रेम बना रहेगा। आगे श्री देवरहा शिवनाथदास जी ने कहा कि जब बाबा के द्वारा की गई भविष्यवाणी में देर होने लगी तो उन पर से भक्तों का विश्वास धीरे-धीरे उठने लगा कि और लोग कहने लगे कि बाबा की भविष्यवाणी व्यर्थ हो गई। लेकिन न्यायालय का फैसला आते ही अब अविश्वास विश्वास में बदल गया। इसी कारण तो भक्तगण तो मेरे पास आये हैं। देवरहा शिवनाथजी ने कहा कि इस कृपा के तले मैं अपने गुरूदेव श्री देवराहा बाबा के साथ-साथ उच्च न्यायालय के माननीय न्यायधीशों के प्रति आभार व्यक्त करते हूं। ( साभार: राजीव कुमार, मीडिया क्लब ऑफ़ इण्डिया ) *******************************