दोहा सलिला:
गतागत
सलिल
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गर्व न जिनको विगत पर, जिन्हें आज पर शर्म।
बदकिस्मत हैं वे सभी, ज्ञात न जीवन मर्म।।
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विगत आज की प्रेरणा, बनकर करे सुधार।
कर्म-कुंडली आज की, भावी का आधार।।
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गत-आगत दो तीर हैं, आज सलिल की धार।
भाग्य नाव खेत मनुज, थाम कर्म-पतवार।।
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कौन कहे क्या 'सलिल' मत, करना इसकी फ़िक्र।
श्रम-कोशिश कर अनवरत, समय करगा ज़िक्र।।
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जसे मूल पर शर्म है, वह सचमुच नादान।
तार नहीं सकते उसे, नर क्या खुद भगवान।।
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दीप्ति भोर की ग्रहण कर, शशि बन दमका रात।
फ़िक्र न कर वंदन करे, तेरा पुलक प्रभात।।
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भला भले में देखते, हैं परदेशी विज्ञ।
बुरा भेल में लिखते, हाय स्वदेशी अज्ञ।।
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Sanjiv verma 'Salil'*
salil.sanjiv@gmail.com
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